हिन्दू नववर्ष

अनमोल विरासत के धनिकों को 
चाहिए कोई उधार नहीं
ये नववर्ष हमें स्वीकार नहीं
- दिनकर




कुछ लोग दिसम्बर से ही पाश्चात्य नववर्ष की अग्रिम शुभकामनाएं भेजने लगते हैं। उनको अपने अनमोल विरासत के बारे शायद पता ही नहीं है। उनको पता नहीं जिस समय ग्रेगोरियन कैलेंडर बना नहीं था, इन ढूंढे गए देशों में कीड़े-मकोड़े पलते थे उस समय भारतवर्ष में विक्रमादित्य की शानदार राजव्यवस्था चल रही थी, विक्रमी संवत्सर अस्तित्व में थी।


हमारे भारत में जब नववर्ष मनाया जाता है उसका स्वागत स्वंय प्रकृति करती है। उस समय प्रकृति में नूतनता होती है। वृक्षों से सूखे पत्ते झड़ जाते हैं और वृक्ष नए कोपलों को धारण करता है। चहुँ ओर हरियाली होती है। पक्षियाँ चहकने लगते हैं, भँवरे मुस्कुराने लगते हैं, पुष्पों के सुगंध से वातावरण गमकने लगती है।


हमारा नववर्ष चैत्र महीने के शुक्ल प्रतिपदा को गीतों के मंगल ध्वनियों के साथ देवी दुर्गा की उपासना से शुरू होती है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा वही तिथि है जिस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और सम्राट धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हुआ था।


1 जनवरी को प्रकृति भी लोगों के दाँत कटकटाकर क्रोध व्यक्त करती है। क्योंकि यह विकृत नववर्ष है। 1752 ईस्वी तक इंग्लैंड में मार्च में नवीन वर्ष मनाया जाता था। प्रथम माह की शुरुआत मार्च महीने से होती थी और "मार्च" का अर्थ भी यही है। आप मार्च से सातवाँ महीना जोड़िए आपको "सप्तांबर, अष्टांबर, नवाम्बर, दशाम्बर" प्राप्त होगा।
जिसने दुनिया पर राज किया दुनिया उसी के साथ पीछे चलने लगी। लोग पिछलग्गु बनते चले गए।


आपलोग नकचली न बनें। अपने संततियों को सही त्यौहार बतायें, सही नववर्ष मनायें।

वन्दे मातरम् 🇮🇳